December 25, 2008

आंतरिक और बाहरी हमलावरों से हम कितने सुरक्षित?








भारत में तीन करोड़ अवैध बांग्लादेशी, देश में गंभीर खतरे की आशंका

दोस्तों, हमारे देश के लिए कुछ चिंता की बातें हैं लेकिन हमेशा की तरह हम सब इसकी तरफ से आँखे मूँदे रहते हैं। आखिर हमारा घर तो सुरक्षित है...बस यही सोच है हमारी.....और यही सोच किसी दिन ले भी डूबेगी हमें....। तो आप लोग उन बांग्लादेशी मुसलमानों की सुनते तो रहते ही होंगे जो रोजी-रोटी के चक्कर में हमारे देश में आ गए हैं। तो स्थिति अब विकट हो गई है। जरा बानगी देखिए....
देश में पूर्वोत्तर राज्यों की सीमाओं पर पर्याप्त चौकसी का अभाव होने से बांग्लादेश से प्रवेश करने वाले घुसपैठिए असम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल और बिहार तक ही नहीं, बल्कि राजधानी दिल्ली के अलावा कई अन्य प्रमुख शहरों तक पहुँच गए हैं और आज हालत यह है कि पूरे देश में घुसपैठियों की संख्या तीन करोड़ को पार कर चुकी है। सिर्फ दिल्ली में ही बाग्लादेशी मुसलमानों की संख्या २० से ३० लाख के बीच है और इनकी हलचल में मैंने खुद अपनी आँखों से देखी है जब मैं दिल्ली में रहा करता था। बांग्लादेशियों के देश में बे-रोकटोक घुसपैठ के कारण सीमावर्ती जिले मुस्लिम बहुल हो गए हैं और इन प्रांतों का जनसंख्या संतुलन बिगड़ गया है। असम के पूर्व राज्यपाल अजयसिंह ने भी केंद्र सरकार को सौंपी रिपोर्ट में स्पष्ट किया था कि हर दिन छह हजार बांग्लादेशी देश में घुसपैठ करते हैं। दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछली जनगणना में बांग्लादेश से एक करोड़ लोग गायब हैं। इन घुसपैठियों के चोरी, लूटपाट, डकैती, हथियार एवं पशु तस्करी, जाली नोट एवं नशीली दवाओं के कारोबार जैसी आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के कारण कानून व्यवस्था पर गंभीर खतरा पैदा हो गया है। इसके अलावा बांग्लादेशी घुसपैठ आतंकवादी संगठनों एवं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की गतिविधियों के लिए एक हथियार के रूप में उभरकर देश की सुरक्षा के समक्ष खतरा पैदा कर रही है।

गत 17 दिसंबर को बिहार के किशनगंज में आयोजित एक रैली के दौरान संघ की प्रशाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने इन घुसपैठियों के खिलाफ जंग का ऐलान करते हुए घुसपैठियों की पहचान और उनकी नागरिकता समाप्त करने के लिए स्वतंत्र टास्क फोर्स के गठन और चिकन नेक पट्टी को विशेष सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर इसे सेना के हवाले करने की प्रधानमंत्री से माँग की। परिषद की माँगों में 1951 की भारतीय नागरिक पंजीयन के आधार पर बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान कर उनका नाम मतदाता सूची से हटाने और उनकी नागरिकता समाप्त करने के लिए तथा घुसपैठ संबंधी मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए सभी राज्यों में त्वरित अदालतों का गठन करने की माँग भी शामिल थी। परिषद ने आरोप लगाया कि वोट बैंक की राजनीति के कारण सत्ता में बैठे कुछ लोग देश की एकता और अखंडता के साथ समझौता कर रहे हैं। गौरतलब है कि पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से जोड़ने वाले 32 किमी लंबे और 21 से 24 किमी चौडे़ सिलीगुड़ी कॉरिडोर को चिकन नेक पट्टी के नाम से जाना जाता है। बाग्लादेशियों की इस घुसपैठ को रोकने के लिए भारत-बांग्लादेश सीमा को पूरी तरह सील करने, तारबंदी का काम जल्द से जल्द पूरा कर उसमें विद्युत प्रवाह की व्यवस्था करने, सीमावर्ती क्षेत्र में सभी मस्जिदों, मदरसों अन्य धार्मिक स्थलों तथा नए बसे गाँवों की जाँच करने और देश की सुरक्षा के लिए अवैध निर्माणों को हटाने तथा सीमा सुरक्षा बल को आधुनिक उपकरण हथियार और व्यापक अधिकार देने की भी माँग भी की गई है।
उल्लेखनीय है कि चार साल पहले केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने भी डेढ़ करोड़ बांग्लादेशियों का घुसपैठ की बात स्वीकार की थी। इसके अलावा वैध तरीके से वीजा लेकर आए करीब 15 लाख बांग्लादेशी भी देश में गायब हैं। छह मई 1997 में संसद में दिए बयान में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री इंद्रजीत गुप्ता ने भी स्वीकार किया था कि देश में एक करोड़ बांग्लादेशी हैं। ऐसी सूचना है कि पश्चिम बंगाल के 52 विधानसभा क्षेत्रों में 80 लाख और बिहार के 35 विधानसभा क्षेत्रों में 20 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं। दोस्तों, ये मेरी रिपोर्ट नहीं है, ये संयुक्त राष्ट्र और न्यूज एजेंसियों की रिपोर्ट है।
दोस्तों, हालांकि हमारे देश की सरकारों और नेताओं को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन ये सही है कि मुस्लिम कट्टरपंथी हमेशा कुछ और ही जुगाड़ में रहते हैं। आपको यहाँ दो नक्शे दे रहा हूँ इन कट्टरपंथियों की योजनाओं को दर्शाने के लिए जिसमें ये भारत को इस्लामिक स्टेट बनाना चाहते हैं। हालांकि बांग्लादेशी मुसलमानों (घुसपैठियों) को हमारे देश के वामपंथियों का वरदहस्त मिला हुआ है लेकिन मुझे कम्युनिस्ट नेताओं और मुस्लिमों का कॉम्बिनेशन कभी समझ में नहीं आता। कम्युनिस्ट धर्म को दरकिनार करते हैं और मुसलमानों के लिए धर्म से बढ़कर और कुछ नहीं है। संसार के ५६ मुस्लिम देशों में से कहीं भी कम्युनिस्ट पार्टी अस्तित्व में नहीं है और ना ही कोई कम्युनिस्ट वहाँ मिलता है। दूसरा अगर किसी भी देश पर मुसलमानों का कब्जा होगा या हो जाता है तो सबसे पहले वो इन्हीं कम्युनिस्टों को अपने यहाँ से मारकर भगाएँगे क्योंकि इनका वहाँ फिर कोई काम नहीं बचेगा।
बांग्लादेश से भागकर यहाँ आ रहे करोड़ों मुसलमानों को देखकर हमें डर नहीं लग रहा ये आश्चर्य की बात है क्योंकि इनकी संख्या आस्ट्रेलिया (एक पूरा देश) की संख्या से भी ज्यादा है भाई। वो लेबनान का गृहयुद्ध याद है ना आपको। जो कुछ दशक पहले हुआ था। फ्रांस से १९४१ में कब्जा छुड़ाने के बाद लैबनान अरब लीग में शामिल हुआ और इसराइल से उलझ गया। फिर १९७१ से ७५ तक वहाँ गृहयुद्ध भी चला। इस गृहयुद्ध में लैबनान की राजधानी बैरूत के बाहरी क्षेत्रों में रह रहे ईसाईयों पर स्थानीय मुसलमान आदतानुसार हमला करने पहुँच गए। लेकिन ईसाई युवाओं ने उनका दृढ़ता के साथ मुकाबला किया और उन्हें पीछे हटने के लिए मजबूर किया। लेकिन हमारे यहाँ स्थिति बिल्कुल उलट है। हम आज तक नहीं मानते कि हमारे यहाँ गृहयुद्ध हो सकता है जबकि हम भारत-पाक बँटवारे के समय वैसी भयावह स्थिति से दो-चार हो चुके हैं। हमारे सरकारी तंत्र के पास ना तो हमें बचाने के इंतजाम हैं और ना ही खुद को। ऐसे में हम बाहर से आने वाले खतरनाक घुसपैठियों का मुकाबला कैसे करेंगे। शायद ये कम्युनिस्ट बेहतर बता पाएँगे।
आपका ही सचिन...।

2 comments:

sarita argarey said...

भारतीय क्म्युनिस्ट तो बेहद क्न्फ़्यूज़्ड जीव हैं । देश में इनकी राजनीति बस टंगडी अडाने से ज़्यादा कभी नहीं रही । रही बात देश की , तो इसकी परवाह है ही किसे ? हिन्दुओं के बारे में स्वामी निश्चलानंद जी ने हाल ही में एक बात कही थी हालांकि संदर्भ अलग था लेकिन बात एकदम सही थी । उन्होंने कहा था कि ये कौम ऎसी है जिसे सिर्फ़ अपने पेट और अपने परिवार की चिंता रहती है । इतनी स्वार्थपरक सोच के साथ देश के बारे में सोचने की फ़ुर्सत किसे है ?

Gyan Darpan said...

सबसे बड़े साम्प्रदायिक तो भारतीय कम्युनिस्ट ही है