दोस्तों, कल चूँकी बात अधूरी रह गई थी इसलिए पुनः हाजिर हूँ। बात धर्म और उसके प्रसार के लिए किए जाने वाले प्रयासों की हो रही थी। धर्म गुरूओं ने तो शायद इतना कोहराम नहीं मचाया होगा जितना कि उनके अनुयायियों ने मिलकर मचा दिया, तो बात आगे बढ़ाई जाए.....।
अपनी ऊपर कही हुई बात में दो लाइन और जोड़ना चाह रहा हूँ कि..... बुद्ध ईश्वर के मामले में पूरे समय चुप्पी ही लगाए रहे। हाँ, उन्होंने किसी भी प्रकार के भगवान की मूर्तियों का जमकर विरोध किया और मूर्तिपूजा का भी विरोध किया। अभी कुछ साल पहले मैंने पढ़ा कि संसार में सबसे अधिक गौतम बुद्ध की ही प्रतिमाएँ हैं और उनमें से ज्यादातर की पूजा भी होती है। धन्य हैं समझाने वाले, और धन्य हैं उनसे समझने वाले.....।
तो दोस्तों, सारे धर्मों की बात हमने कल ही कर ली थी। तो कुछ दिन पहले मैंने एक खबर पढ़ी थी कि अमेरिकी वैज्ञानिकों ने यह घोषणा की है कि हमें अपने सौरमंडल की परिभाषा वापस से तय करनी होगी। पहले इस सौरमंडल में 9 ग्रह थे। प्लूटो को बेदखल करने के बाद अब इसमें 8 ग्रह रह गए हैं। प्लूटो के लिए नई श्रेणी बना दी गई है। उसका नाम प्लूटोइड रखा गया है और उसमें कुछ अन्य तारे और ग्रह जोड़े जाएँगे। तो वैज्ञानिकों का कहना है कि उनके पास अब नए उपकरण आ गए हैं और वे बेहद अत्याधुनिक हैं, ऐसे में वर्तमान सौरमंडल अब छोटा पड़ने लगा है और उन्हें दूर तक दिखाई देने लगा है। तब फिर नए सौरमंडलों के बारे में हमें जल्दी ही पता चलेगा और साथ ही पता चलेगा हमारी लघुता का।
अब पृथ्वी की हमारे सौरमंडल में ही मझोली औकात है। यानी वो तीन ग्रहों से बड़ी है और अन्य से छोटी। और जो विकट बड़ा सूर्य है उससे कई हजार गुने बड़े तारे भी खोजे जा चुके हैं। तो साहब सर्वशक्तिमान ईश्वर ने ही इन सबकी रचना की है ना (ऐसा मैं तो मानता हूँ, शायद आप सब लोग भी मानते होंगे)। तो उस विकट ब्रह्माण्ड को रचने वाले ईश्वर को क्या इतनी फुरसत रहती है कि वो पृथ्वी जैसे तुच्छ ग्रह का विशेष रूप से ख्याल रखे। और चलो मान लेते हैं कि उसे इतनी फुरसत है तो क्या वह यह भी चाहता है कि किसी धर्म विशेष के लोगों का इस संसार यानी पृथ्वी पर राज हो जाए। धन्य है हमारी सोच, इतना छोटा सोचते हैं। लोगों को अपने पड़ौस और मोहल्ले के बारे में पूरा पता नहीं रहता लेकिन वो लगे रहते हैं अपने धर्म की पताका पूरी दुनिया में फहराने के लिए। और अगर मेरी बातें गलत हैं तो शायद पृथ्वी का ईश्वर अलग होता होगा, बाकी ब्रह्माण्ड का अलग। हालांकि मैं अकेले उस पृथ्वी वाले ईश्वर को नहीं जानता। हाँ, मैं उस ईश्वर को जरूर जानता हूँ जो ब्रह्माण्ड में हो रहे विस्फोटो को आतिशबाजी की तरह देखता होगा। उन विस्फोटो को जिनसे कई सौरमंडल बनते और बिगड़ते हैं। वो ईश्वर वाकई बहुत बड़ा है, आपकी और हमारी सोच जितना छोटा कतई नहीं है।
आजकल जिस तरह से पृथ्वी के वातावरण के बिगड़ने की बातें कही जा रही हैं और वैज्ञानिक मौसम परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को लेकर जिस तरह से चिंतित हैं उससे तो लग रहा है कि पहले तो यह पृथ्वी बची रहे, बाद में धर्मों के बारे में भी सोचा जा सकता है। दूसरी बात अमेरिका से चिढ़ने वाले लोगों के लिए लिख रहा हूँ। इस्लामी देश अमेरिका से किस इंतहा तक नफरत करते हैं यह बताने की जरूरत नहीं है। लेकिन एक बार किसी मुस्लिम भाई से मेरी बात हो रही थी। वे कह रहे थे कि अमेरिका का नाश जल्ही ही होने वाला है। शायद उनकी जमात वाले लोग ही करेंगे (?)। लेकिन मेरा भी एक तर्क था। यह अमेरिका के फेवर में कतई नहीं है लेकिन तार्किक है। आप भी सुनिए। आपने एक जुमला सुना होगा, कि हम तो डूबेंगे सनम, तुम्हें भी ले डूबेंगे। यानी अमेरिका के पास इतने परमाणु और हाइड्रोजन बम हैं कि वो इस पृथ्वी को 90 बार नष्ट कर सकता है। ये अलग बात है कि दूसरी बार वो नष्ट हो ही नहीं सकती। इसे इस प्रकार कह सकते हैं कि अमेरिका पृथ्वी जितने बड़े ग्रह को 90 बार नष्ट कर सकता है। अमेरिका के पास लगभग 12 हजार परमाणु अस्त्र-शस्त्र हैं। रूस के पास इनकी संख्या 18 हजार हैं। तो साहब इन बमों की ताकत कितनी है यह बताने में मैं अपना और आपका समय जाया करना नहीं चाहता। बस इतना बताना चाहता हूँ कि अब वे जापान पर गिराए बमों से कई हजार गुना ज्यादा शक्तिशाली हैं। तो अमेरिका ऐसे ही दुनिया में अपनी धाक नहीं जमाए हुए है।
अब वो जमाना गया जब मानव बल के ऊपर युद्ध लड़े या जीते जाते थे। इस्लाम को मानने वाले दुनिया में 135 करोड़ हैं लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि संख्या इन भयानक हथियारों के सामने करेगी क्या? इराक युद्ध में अमेरिका के लगभग 4000 सैनिक मारे गए जबकि मरने वाले इराकियों की संख्या 12 लाख (यह नॉन आफिशियल आंकड़ा है, आफिशियल आंकड़ा तो डेढ़ लाख है जिसे कई स्वयंसेवी संस्थाओं ने पहले ही झूठा करार दे दिया है) से ज्यादा है। वो भी तब जब अमेरिका जमीन पर उतरकर लड़ा। जापान की तरह उसने परमाणु बमों का उपयोग नहीं किया। तो जिस दिन अमेरिका को लगेगा कि उसका विनाश तय है तो वो अपना अंतिम वार क्या चलेगा ये तो फिर आप ही सोचिए।
मैं किसी को अमेरिका के नाम से डरा नहीं रहा हूँ लेकिन सिर्फ यह बता रहा हूँ कि अब संख्या के बल पर हावी होना संभव नहीं। धर्म के नाम पर तो बिल्कुल नहीं। हाँ, अर्थ और सामरिक ताकत की बात की जा सकती है। लेकिन धर्मांधता नाश करेगी यह तय है। अभी कुछ माह पहले एक संदर्भ सामने आया था। कि मक्का में 56 मुस्लिम राष्ट्रों की पारंपरिक बैठक में (इस बैठक का एजेंडा काफी गुप्त रखा जाता है) यह तय हुआ है कि इसाक और अब्राहिम के वंशजों के साथ मुस्लिम मिलकर या सौहदार्यपूर्वक रहें क्योंकि उन सबके पूर्वज एक थे। इसाक और अब्राहिक के वंशजों में ईसाई और यहूदी दोनों शामिल हैं। दोनों ही धर्म के लोग बाइबल को मानते हैं। इस्लाम में भी ईसा को हजरत पैगंबर ईसा मसीह कहा जाता है। उनके ऊपर कुरान में पूरा डेढ़ चैप्टर है। इस धर्म के सारे पैगंबर भी बाइबल खत्म होने तक यानी ईसा तक एक ही रहे हैं। मतलब ये तीनों धर्म के लोग मिलकर रहें, यही जीस्ट है। लेकिन इसमें मेरी आपत्ति यह है कि भाई हमें क्यों छोड़ दिया यहाँ। हम तो उनसे भी पुराने हैं। शांतिप्रिय तरीके से रहना चाहते हैं लेकिन अब चूँकी ईसाई और यहूदी भारी पड़ रहे हैं तो उनके साथ मिलकर रहने की बातें चल रही हैं। मेरा यह कहना है कि अगर हमें अपनी भावी पीढ़ी को वाकई एक खूबसूरत पृथ्वी रहने के लिए उपहार में देनी है तो हम सबको मिलकर रहना होगा बिना ये देखे कि कौन किसका वंशज है। मुझे लगता है कि अगर ईश्वर मेरी बात सुन रहा है तो विश्व में एक दिन धर्मों से परे शांति जरूर आएगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो ये तय है कि ये पृथ्वी रहने लायक नहीं बचेगी।
आपका ही सचिन.....।
(नोटः मैंने यहाँ शांति की बातें इसलिए कहीं क्योंकि मानव का मूल स्वभाव यही होता है। लेकिन अगर उसके ऊपर गाज गिर ही रही हो तो उसे अपने बचाव में कितना भी बड़ा कदम उठाना चाहिए, मैं यही मानता हूँ)
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