दोस्तों, इस संसार में आतंकवाद को फिलहाल इस्लाम से जोड़कर देखा जाता है। आज से दो दशक पूर्व ऐसा नहीं था। तब इसके कई अन्य चेहरे भी थे लेकिन पिछले २० सालों से यह इस्लाम के साथ जोड़कर देखा जा रहा है। अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में हुए हादसे के बाद तो अमेरिका और अन्य योरपीय देशों के मीडिया ने इसे पूरे विश्व में इस तथ्य के साथ लगभग स्थापित कर दिया है। लेकिन इसमें मैं कुछ दलीलें देना चाहता हूँ.....आप फरक कीजिएगा।
मुंबई के गैरसरकारी संगठन मुस्लिम काउंसिल आफ इंडिया ने माँग की है कि मुंबई आतंकी हमलों में मारे गए नौ आतंकियों को दफनाने के लिए जगह ना दी जाए। काउंसिल के सचिव सरफराज आरजू ने दक्षिण मुंबई के मरीन लाइंस में प्रदेश के सबसे बड़े कब्रिस्तान का संचालन करने वाली जामा मस्जिद ट्रस्ट को पत्र लिखकर यह माँग की। आरजू ने बताया कि इन आतंकियों ने जघन्य कांड किया है जिसमें सैंकड़ों जाने गई हैं। इस्लाम में इस प्रकार का हत्याकांड करने और उससे जन्नत मिलने का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। इन आतंकियों को सच्चा मुसलमान नहीं माना जा सकता। इस बारे में ट्रस्टी हनीफ नालखांडे का कहना है कि नियमानुसार कब्रिस्तान में किसी भी मुस्लिम को दफनाने से इंकार नहीं किया जा सकता। चाहे वह अपराधी हो, लेकिन इस मामले में ट्रस्ट आतंकियों के अंतिम संस्कार का खर्चा नहीं उठाएगी। हालांकि बाद में ट्रस्ट ने पूरी तरह से इस मामले में हाथ खड़े कर दिए और अब मरने वाली आतंकियों के शव बदबू मारने लगे हैं लेकिन उन्हें दफनाने के लिए जगह नहीं मिल रही है। जबकि उन आतंकियों ने सोचा था कि उन्हें जन्नत नसीब होगी लेकिन यहाँ दो गज जमीन भी नहीं मिल रही है।
दोस्तों, ऊपर मैंने मुस्लिम समाज का एक चेहरा रखा है, दूसरा चेहरा इस प्रकार है जो मैंने कई जगह पढ़ा, देखा और उसपर अध्ययन किया है। कि ओसामा बिन लादेन ने अपने अनुयायियों से १९९५ में कहा था कि अब समय आ गया है कि हम इस्लाम की पताका पूरे विश्व में फहराने के लिए आगे बढ़ें। इसके लिए हमें सबसे पहले ईसाइयों के सबसे मजबूत गढ़ अमेरिका को ढहाना होगा। ओसामा ने १९९५ में प्लेन हाइजैक कर अमेरिकी ट्रेड सेंटर की इमारतों को उड़ाने की साजिश रची थी। उसका मानना था कि ऐसा करके हम अमेरिका को उकसा सकेंगे और वो अफगानिस्तान पर हमला कर देगा। इसके बाद पूरी मुस्लिम दुनिया की सहानुभूति अफगानिस्तान के साथ हो जाएगी और वो अमेरिका से नफरत करने लगेगी। यही तरीका है कि हम मुसलमानों को उकसाकर दुनिया पर कब्जा करने के लिए प्रेरित करें। दोस्तों, ओसामा ही प्लानिंग बिल्कुल सही चल रही है। २००१ के हमलों के बाद ठीक ऐसा ही हुआ और आज पूरी मुस्लिम दुनिया अमेरिका को अपना दुश्मन नंबर एक मानती है। दूसरे, ओसामा ने एक काम और किया, १८ से २५ साल तक के लड़कों के मन में जहर भरना शुरू कर दिया। वो उन लड़कों की खेती करता है और उस फसल को आतंकवाद के बाजार में बेच देता है या इस्तेमाल करता है। इन लड़कों को बताया जाता है कि अगर वो अल्लाह के नाम पर शहीद होंगे या कुर्बान होंगे तो उन्हें जन्नत मिलेगी, वहाँ महल मिलेंगे और उन्हें ७२ हूरों के साथ सहवास करने का मौका मिलेगा। ट्रेड सेंटर पर हमला करने वाले गिरोह के मुखिया मोहम्मद अट्टा और उसके सहयोगी अपनी फाइनल उड़ान (प्लेन हाइजैक करने वाली) पकड़ने से पहले जिस होटल में ठहरे थे वहाँ उन्होंने वैश्याओं के रेट पूछे थे और बाद में ब्लू फिल्में भी देखी थीं।
दोस्तों, मुंबई आतंकी हमले करने वाले आतंकी लड़कों की उम्र भी १८ से २२ के बीच ही थी। इस उम्र में लड़के आसानी से बहक जाते हैं। ये जिन रुपयों के बल पर आतंकी सैन्य प्रशिक्षण और गोला-बारूद-असलाह लेकर आते हैं वो भी मुस्लिम दुनिया से जकात (अपनी कमाई में से धर्म-कर्म के लिए दी जाने वाली निश्चित राशि) के नाम पर आता है। ये जकात धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए दी जाती है लेकिन उसका उपयोग आतंकी कार्रवाईयों के लिए होता है। जैसे कश्मीर में आए भूकंप में पीड़ितों के लिए जो जकात आई उसका लश्कर-ए-तोएबा ने वहाँ आतंकी शिविरों को लगाने के लिए उपयोग किया। इस जकात का ज्यादातर रुपया अरब दुनिया से आता है जहाँ पेट्रो डॉलर (पेट्रोलियम के उत्पादन से मिलने वाला रुपया) पानी की तरह बरस रहा है और किसी को भी उस रुपए के हिसाब को रखने की फुर्सत नहीं है। अरब दुनिया तो धर्म के नाम पर जकात देकर भूल जाती है लेकिन उसे भी देखना चाहिए कि उसका उपयोग किस प्रकार के कार्यों में हो रहा है। ये जकात कैसे जिहाद में लगाई जा रही है जो इस दुनिया से आदमी का नामो-निशान खत्म करने की फिराक में है। याद रखें, ओसामा कह चुका है कि हम अब वर्दी वालों (यानी सैनिक) और बिना वर्दी वालों (यानी आम आदमी) में कोई फर्क नहीं करेंगे। हम सबको मारेंगे.....इस्लाम की खातिर......!!!!!!!
आपका ही सचिन.....।
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11 comments:
दुनिया में सभी जगह आजकल धर्म को आतंकवाद से जोड़कर देखा जाने लगा है यह कटु सत्य है .
आपने लिखा सही है मगर धर्म को समाज से अलग रख भी तो नही सकते।
बढ़िया लिखते हो , मेरी शुभकामनायें !
सच्ची बात, अच्छी बात. धन्यवाद
जिस समय ये लोग जेहाद के नाम पर आतंक मचा रहे थे, तब सभी खामोश तमाशा देख रहे थे। अब जव सर से पानी ऊंचा हो गया तो बात समझ में आ गई - देर आयद दुरुस्त आयद।
सच्ची बात..
काफी संतुलित तरीका बात को कैहने का, अच्छे पत्रकार के लक्षण साफ ही दिखते हैं. पत्रकारों के उपर काफी जिम्मेदारी है समाज की सच को सामने लाने की और ये बताने की कि आम आदमी के लिये कौन कौन से रास्ते खुले हैं. आशा है कि आप अपनी लेखनी के द्वारा इस जिम्मेदारी को निभायेंगे, हो सके तो संपर्क में रहिये.
शुभकामनायें.
अगर मुंबई के मुसलमान अपनी इस सही बात पर डटे रहे तो इन आतंकियों को दफ़न होने के लिए दो गज जमीन भी नहीं मिलेगी. सारे इंसान अल्लाह के बच्चे हैं. अल्लाह के बच्चों को मारने वालों को जन्नत तो दूर इस जमीन पर भी दो गज जमीन न मिले,यही अल्लाह का न्याय होगा.
दोस्त, पूरी दुनिया में इस्लाम इसी तरह फैलाया गया है। या तो कलमा पढ़ लो या मौत स्वीकारो नहीं तो देश छोड़ दो। यह तो सिख थे जिन्होनें मध्य युग में भारत में इस्लाम को फैलने से रोक दिया था।
बहुत ही सटीक लिखा है आपने हम सबको मारेंगे.....इस्लाम की खातिर......!!!!!!!
पागलों की कमी नहीं है भाई, एक खोजो हजार मिलते हैं।
किन्तु रखते हैं जो दिमाग संग में, फर्क वो हर जगह पे करते हैं।
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