आतंकवाद के मुद्दे पर अमेरिका और अमीरों का रवैया स्वार्थसिद्धी वाला
मुंबई आतंकी हमले के बाद अमेरिका लगातार भारत के साथ पाकिस्तान को धमका रहा है। इतना ही नहीं भावी अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी भारत के पक्ष में स्वप्रेरित बयान दे दिया कि अपनी अस्मिता की रक्षा करने का भारत को पूरा हक है। वो चाहे तो पाक अधिकृत कश्मीर में स्थित आतंकी शिविरों पर हमला कर सकता है। ओबामा के बाद कोडेंलिजा राइस भारत और फिर इस्लामाबाद गईं। उन्होंने ने भी वहीं जुबान बोली। मैं पहले तो अमेरिका के इस रवैए से खुश हो रहा था। फिर बाद में सोचा कि जिस अमेरिका ने सभी युद्धों में पाकिस्तान का साथ दिया वो इस बार हमारे साथ इतनी दृढ़ता के साथ कैसे खड़ा है..?? फिर सोचने पर तो कई कड़ियाँ एक दूसरे से जुड़ गईं..।। इस बात को हालांकि आप लोगों ने भी सोचा होगा लेकिन मेरा एंगल भी देख लीजिए..
अमेरिका के सामने भारत आतंकवाद का रोना पिछले दो दशकों से रो रहा है लेकिन अमेरिका को उसकी आवाज ठीक १२ साल बाद २००१ में न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड टॉवरों के गिरने के साथ-साथ सुनाई दी। अपने ४००० नागरिकों को खोने के बाद अमेरिका को पता चला कि आतंकवाद क्या होता है?? ये करतूत अमेरिका द्वारा खड़े किए गए उसी तालिबान द्वारा की गई थी जिसे अमेरिका ने रूस के खिलाफ शह पर चढ़ाया था....उन तालिबानियों को महिमामंडित करते हुए रैम्बो-३ फिल्म बनाई थी। अमेरिका ने तुरत-फुरत विश्व भर में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध करने का एलान कर दिया और उसमें बुरी तरह फ्लाफ रहा। तो दोस्तों, बात मुंबई हमले की चल रही है। मुंबई में आतंकियों ने ताज और ओबेराय होटल में चुन-चुनकर अमेरिकियों और ब्रिटिश नागरिकों को मारा। इस बात से अमेरिका के कान खड़े हो गए। उसने सोचा कि मैं अपने नागरिकों को अपनी भूमि यानी अमेरिका में तो बचा लूँगा लेकिन विदेशों या बाहरी जगह पर उनकी सुरक्षा का क्या होगा...?? बस इसी प्रश्न ने अमेरिका और ब्रिटेन को मजबूरन हमारे साथ खड़े रहने के लिए प्रेरित किया, नहीं तो ये वही अमेरिका है जिसने पिछले ६० साल से पाकिस्तान को अपना बगलबच्चा बना रखा है और उसे वो भारत के खिलाफ इस्तेमाल करता रहा है। कह सकते हैं कि आतंकवाद ही अमेरिका को भारत के करीब लाया है।
आतंकवाद ने एक काम और किया है। वो ताज होटल याद है ना आपको। एक बार मैं मुंबई गया था। करीब १२ साल पहले, अपने छात्र जीवन में। तब हमने ताज होटल की लॉबी देखने की कोशिश की थी डरते-डरते। हम कुछ दोस्तों को वहाँ के दरबान द्वारा भगा दिया गया। वो क्या है कि वहाँ गरीबों को या कहें कि उनकी परछाई को भी दूर से भगा दिया जाता है....तो ये भारत के हम जैसे गरीब ही हैं जिन्होंने ताज होटल में मरने वाले रईसों के लिए आँसू बहाए...नहीं तो आज तक जितने भी आतंकी हमलों में गरीब मारे गए उनमें कभी इन रईसों ने आँसू नहीं बहाए। तो आतंकवाद इस मामले (आँसू बहाने) में भी अमीरों और गरीबों को पास लाया। ठीक अमेरिका और भारत की तरह। अब अमीर भी अमेरिका की तरह समझ गए हैं कि वे सुरक्षित नहीं....किसी फाइव स्टार होटल में अपने परिवार के साथ खाना खाते हुए भी नहीं....बस यही कारण है कि इस बार ये चिकने रईस मोमबत्ती, पोस्टर और मशालें लेकर नेताओं के विरोध में उतर गए..और उन्हें देखकर भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने लिपिस्टिक-पाउडर वाली टिप्पणी कर दी और बेचारे फँस गए, देशभर में उन्होंने गालियाँ खाईं...जबकि उस समय उनका इस हिसाब से प्वाइंट सही था। तो दोस्तों, हमें वर्तमान के हिसाब से चीजों को नहीं सोचना चाहिए....ये भी देखना चाहिए कि पहले इन्हीं लोगों या देशों का हमारे प्रति क्या रुख रहा करता था......आतंकवाद और डर ने अमेरिका को भारत के और रईसों को गरीबों के करीब कर दिया है.....लेकिन यह रिश्ता स्थाई तो कतई नहीं हो सकता क्योंकि ये मजबूरी में बना रिश्ता है......क्योंकि अमेरिका हो या होटल ताज गरीबों को कौन देखना चाहता है....????
आपका ही सचिन....।
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1 comment:
बहुत बढ़िया लिखा
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