December 03, 2008

धर्मांधता अंततः महंगी ही पड़ेगी- भाग 1

मुंबई में हुए आतंकी हमले ने मन को झकझोरकर रख दिया है। कई कोणों से मैं इन बातों को सोच रहा था। क्या धर्म वाकई इतना महत्वपूर्ण है कि उसपर लोग अपनी जान न्यौछावर किए दे रहे हैं। मुझे तो लगता है कि अगर संसार में धर्म नहीं होते तो शायद यह ज्यादा अच्छा और खुशनुमा होता। मैं कार्ल मार्क्स की उस बात का हामी नहीं हूँ कि धर्म अफीम के नशे जैसा होता है ( हालांकि मार्क्स को पढ़ने और पढ़ाने वाले एक प्रोफेसर ने मुझसे कहा था कि मार्क्स ने कभी ऐसा बोला ही नहीं था) लेकिन एक बात जरूर है कि धर्म से तमाम प्रकार की सहायता मिलने के बावजूद इस मानव को एक लत तो इससे जरूर लग गई है, वह है अपना धर्म दूसरों पर हावी करने की।
तो दोस्तों, यहाँ मैं कुछ धर्मों की बात करूँगा। विश्व के १० आरगेनाइज्ड यानी संगठित धर्मों में पहले नंबर पर कैथोलिक ईसाई धर्म है। इस धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या विश्व में लगभग २१० करोड़ है। दूसरे नंबर पर इस्लाम (सुन्नी मुसलमान) आता है। इसे मानने वालों की संख्या लगभग १३५ करोड़ है। तीसरे नंबर पर हमारा धर्म यानी हिन्दू धर्म आता है। इस धर्म को मानने वालों की संसार में संख्या ९० से १०० करोड़ के बीच है। उसके बाद बौद्ध धर्म है जिसके अनुयायी ३५ करोड़ हैं। इसके अलावा सिख धर्म को मानने वाले करीब ३.५ करोड़ और जैन धर्म को मानने वाले करीब ७० लाख से एक करोड़ के बीच हैं। बाकी कई अन्य धर्म भी हैं जिन्हें छोटे स्तरों पर माना जाता है। अफ्रीकी लोग कई समुदायों में बँटे हुए हैं और आस्ट्रेलिया में भी कई जनजातियाँ हैं। लेकिन कम संख्या में जो प्रभावी धर्म हैं उनके शिया मुस्लिम और यहूदी शामिल हैं। चीन में शिंटो और कन्फ्यूशियज्म को मानने वाले भी ४५ लाख से २.५ करोड़ के बीच हैं। शियाओं का मुख्य गढ़ ईरान है लेकिन ये लैबनान, यमन, कुवैत, ब्राजील, अल्बेनिया, तुर्की और पाकिस्तान में भी मिलते हैं। दूसरी ओर यहूदी हैं। आज की तारीख में यह धर्म इस्लाम का नंबर एक दुश्मन है। इस धर्म के अनुयायी करीब १ करोड़ १०-५० लाख के बीच हैं। इनमें से करीब ५५ लाख इसराइल और इतने ही संयुक्त राज्य अमेरिका में रहते हैं। बाकी बचे कुछ हजारों की संख्या में पूरे विश्व में रहते हैं जिनमें से इनके पाँच हजार परिवार भारत में भी रहते हैं।
आप सोच रहे होंगे कि मैं धर्मों की इतनी वृहद विवेचना क्यों कर रहा हूँ। वस्तुतः मैं इन धर्मों में छुपी हिंसा को जानने की कोशिश में यहाँ तक पहुँचा हूँ। संसार का हर धर्म और उसे मानने वाला अपने आपको सर्वश्रेष्ठ मानता है। सब धर्मों की व्याख्या भी बहुत रोचक है। अब चूँकी बात जिहाद की हो रही है और भारत में हमला करने वाले आतंकी संगठन डेक्कन मुजाहिदीन ने इसे हिन्दू-मुसलमानों के बीच की जंग बताया है तो सबसे पहले इन्हीं दो धर्मों की सुनिए। इस्लाम को मानने वाले मानते हैं कि उनका धर्म जो नहीं मानता वो काफिर होते हैं और उनका धर्म चूँकी सीधे ऊपरवाले से जुड़ा हुआ है इसलिए इसे ना मानने वाले सीधे दोजख में जाएँगे। दोजख यानी नर्क। इस्लाम यह भी मानता है कि एक दिन पूरे विश्व में इस धर्म और इसे मानने वालों का राज रहेगा। इस धर्म को सब-दूर पहुँचाने के लिए इसके अनुयायियों ने बल का भी खूब जमकर प्रयोग किया है। इसमें आप भारत का मुगलकालीन इतिहास और औरंगजेब सरीखे राजाओं को जोड़कर देखिए।
दूसरी ओर हिन्दू धर्म है। इस धर्म के अनुयायी मानते हैं कि यह सबसे पुराना यानी सनातन धर्म है। एक समय पूरे विश्व में इसी का ही राज था और समय के साथ-साथ इसमें क्षेपक जुड़ते गए और इसका ह्रास हुआ। लेकिन भविष्य फिर से सुनहरा है और इनका है। अगर कभी प्रलय हुई तो संसार का एक पीपल के पत्ते जैसे आकार का हिस्सा बना रहेगा जो बिल्कुल भारत जैसा दिखता है और उस हिस्से पर भगवान जन्म लेंगे और सारे हिन्दुओं का उद्धार करेंगे। यह विष्णु भगवान का दसंवा अवतार कल्की भी हो सकता है। वैसे उस रूप में इमेजिन श्री कृष्ण को ही किया गया है। इस बात को जस्टिफाई करने वाले इसके पीछे नास्त्रेदमस की कुछ भविष्यवाणियों का भी हवाला देते हैं जो इस बात के आस-पास सी प्रतीत होती हैं। हालांकि नास्त्रेदमस की १९९५ के आस-पास प्रलय वाली भविष्यवाणी (?) अभी तक अधूरी ही चल रही है और मेरे जैसा व्यक्ति उसे पूरा होते देखना चाह रहा है।
अगर विश्व में सबसे अधिक शक्तिशाली धर्म ईसाईयत की बात करें तो वो १०० देशों से अधिक देशों में फैला हुआ है और उसे मानने वालों की संख्या २१० करोड़ है। इस धर्म को मानने वाले देश विकसित हैं और संसार की आर्थिक तथा सामरिक व्यवस्था पर उनका राज है। मसलन अमेरिका, और पूरा योरप। इनमें जी-८ समूह के देश भी शामिल हैं जो सबसे अधिक औद्योगिक देश हैं और सब ईसाई धर्म को मानने वाले हैं। तो दोस्तों ईसाई धर्म भी दुनिया में पाँव फैलाने में पीछे नहीं हैं। इनके लिए चीजें काम करती हैं। क्रिश्चिनिटी और चर्चेनिटी। मतलब ईसाई सेवा भाव से भी काम करते हैं और लालच से भी। इनका एजुकेशन में पुराना दखल है। संसार भर में मिशनरी स्कूल्स चल रहे हैं। दूसरा कई अन्य चीजें भी हैं जो लोगों को आकर्षित करती हैं। इस्लाम ने जहाँ ने अभी तक ताकत से अपने धर्म का विस्तार किया है वहीं ईसाई धर्म ने सब प्रकार के लोगों को साथ रखकर अपनी बात रखी है। इनके मिशनरी गाँव-खेड़ों, बस्तियों से लेकर आदिवासी इलाकों तक में जाते हैं। सेवा करने के लिए। लेकिन शायद उनकी बातों में ऐसा जादू होता है कि लोग उनके होकर रह जाते हैं। झारखंड की राजधानी राँची के आस-पास मैंने ढेरों ऐसे गाँव देखे जो ईसाई धर्म को अपना चुके थे। पूछने पर पता चला कि कुछ साल पहले तक ये सारे गाँव आदिवासी समुदायों के ही थे लेकिन अब धर्म के मामले में उनकी तरक्की हो गई है। कुल मिलाकर यह काम काफी सौम्य और शांत तरीके से किया जाता है इसलिए इसकी ज्यादा चर्चा नहीं होती। लेकिन ये तय है कि दुनिया में छाने की तैयारी तो उनकी भी पूरी ही है। बस यही अंतर क्रिश्चिनिटी और चर्चेनिटी में है।
चौथे उस धर्म की भी बात की जा सकती है जो सर्वथा अजीब ही है। यहूदी धर्म के लोग थोड़े डिफरेंट होते हैं। इस धर्म के लोगों ने ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया। खुद ईसा भी यहूदी ही थे। खैर, तो इस धर्म की भी सुनिए। बाइबल के ओल्ड टेस्टामेंट में एक बात लिखी हुई है जिसे पेन-यहूदी कहावत भी कहा जाता है। इसके अनुसार संसार में यहूदियों की आबादी हमेशा कम रहेगी लेकिन वो हमेशा ताकतवर रहेंगे, राज करने की स्थिति में होंगे। इसलिए उन्हें अपने खून यानी ब्लड (रेस) को शुद्ध बनाए रखने की सख्त हिदायत दी जाती है। वो अन्य धर्मों में शादी करके या बच्चे पैदा करके अपने खून को मिलावटी नहीं होने देते। हिटलर यहूदियों की इन बातों से हमेशा चिढ़ता रहा और अपनी जीवनी माइन कांफ में पूरे समय यहूदियों की इन बातों को याद कर-करके उन्हें पानी पी-पीकर कोसता रहा। बाद में उसने यहूदियों पर अपनी भड़ास भी निकाली और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ६० लाख यहूदियों को मरवा डाला। वो अपनी जाति आर्य को सर्वश्रेष्ठ मानता था। तो दोस्तों यह सही भी है कि यहूदी हमेशा राज करने की स्थिति में होते हैं। अमेरिका में वे ५५ लाख हैं लेकिन वहाँ की सीनेट में वो आधे से भी अधिक हैं और किसी भी क्षेत्र की बात करें वो वहाँ अव्वल रहते हैं। तो इसलिए अमेरिका की सीनेट में इसराइल के खिलाफ कभी कोई प्रस्ताव पारित ही नहीं हो पाता।
हालांकि मैं अपने जिस मूल विषय धर्मांधता की बात करना चाह रहा था, उससे थोड़ा भटक गया हूँ लेकिन उससे पहले यह सारी भूमिका बता देना भी बहुत जरूरी था। यहूदियों के बारे में एक रोचक बात और बता देना चाहता हूँ। आपने डेल कम्प्यूटर कंपनी का नाम सुना होगा। तो डेल साहब यानी उस कंपनी के मालिक एक यहूदी हैं जो अमेरिका की बहुत बड़ी कम्प्यूटर कंपनी है। इसी प्रकार मल्टीनेशनल ओरेकल सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर कंपनी है। तो ओरेकल साहब भी यहूदी ही हैं। मशहूर हॉलीवुड स्टार हैरीसन फोर्ड भी यदूही ही हैं। वही एयरफोर्स-वन वाले। आप समझ गए होंगे। अमेरिका में कई बड़े व्यापारी और अन्य सामाजिक-राजनैतिक हस्तियाँ यहूदी हैं। ऐसा माना जाता है कि चार यहूदियों ने तो दुनिया ही बदल दी है। जिसे हम सब आज भी जानते-मानते हैं। उन चार यहूदियों में से पहले हैं महान कलाकार माइकल एंजेलो, दूसरे हैं महान विचारक कार्ल मार्क्स, तीसरे हैं महान चित्रकार पाब्लो पिकासो और चौथे हैं महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आंइस्टीन। ये सभी लोग संसार में अपना लोहा मनवा चुके हैं और यह बताने की जरूरत नहीं कि इनकी क्या उपलब्धियाँ रही हैं।
तो दोस्तों ये सारे धर्म मानते हैं कि संसार पर देर सबेर उनका ही राज होगा। लेकिन क्या ये संभव है....। इसपर मैं आप लोगों से अपने अगले लेख में कल बात करूँगा। यानी कि इस लेख के भाग दो में। तब तक के लिए विदा...।
आपका ही सचिन.........।

3 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

अच्छा आलेख है, अगली कड़ी की प्रतीक्षा है।

PD said...

बढ़िया लिखा.. अगले का इंतजार..

दीपक बाबा said...

सचिन जी बहुत अच्छे लिखे. तथ्यों पर आधारित लेख था. पैसे के दम पर और सेवा के नाम पर इसाई इस समय आधी से ज्यादा दुनिया पर राज कर रहे और मुसलमान ऐ क ५६ लेकर राज करना चाहते है. हमारा हिंदू धर्म जो की बोध धर्मं के प्रभाव से अपना शोर्य खो बेठा था (अशोक के काल से). धर्म को पुनः शोर्य प्राप्त करना होगा. कोई अवतार उपर से नहीं टपकेगा. कोई लोह पुरूष बनाना होगा