December 09, 2008

रीढ़ की सख्ती पसंद नहीं जनता को!

विश्लेषणः दिल्ली, राजस्थान, मप्र-छग विधानसभा चुनाव

देश के पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो गए। केन्द्रीय सत्ता के लिए सेमीफाइनल कहे जाने वाले इन चुनावों के नतीजे सबके सामने हैं। दिल्ली, राजस्थान और मिजोरम में कांग्रेस तथा मप्र-छत्तीसगढ़ में भाजपा ने किला जीता है। लेकिन इन चुनावों ने एक बात साफ कर दी है कि अब हमारे देश की जनता यानी मतदाताओं को रीढ़ की हड्डी की सख्ती पसंद नहीं आ रही है। इन चुनावों से उसने ये बात साफ कर दी है। मैं अपनी बात की व्याख्या कर रहा हूँ...।
दोस्तों, सबसे पहले राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली। यहाँ कांग्रेस १० साल से सत्ता पर काबिज है और भाजपा मानकर चल रही थी कि इस बार इस किले पर फतह उसकी ही है। हमारे देश की जनता को यह पसंद नहीं है कि कोई ज्यादा समय तक उसपर राज करे इसलिए वो चेंज लेने के लिए सत्तासीन पार्टी को जब-तब बदलती रहती है और यही भाजपा की आशा का केन्द्र बिंदु भी था। लेकिन इस बार दिल्ली में कमाल हुआ। ओवरकांफिडेंस से लबरेज दिख रही भाजपा की खाट खड़ी हो गई। इससे मुझे एक वार्तालाप याद आया। अभी कुछ दिन पहले एक टीवी चैनल पर भाजपा की तेजतर्रार महिला नेता सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित को बहस के लिए बुलाया गया था। उस पूरी बहस में सुषमा भारी रहीं और शीला दीक्षित को उनके कार्यकाल की गलतियाँ गिनाती रहीं। शीला दीक्षित अमूमन शांत ही रहीं क्योंकि अगर कोई आपको बोलने ही ना दे तो आप क्या करेंगे। लेकिन दिल्ली की जनता जानती है कि ७१ वर्षीय शीला सौम्य और विनम्र हैं, विकास कार्यों पर ध्यान देती हैं, सब जगह समय पर पहुँच जाती हैं और वे दिल्ली की १० साल से मुख्यमंत्री भी हैं। वे बड़बोली भी नहीं हैं। दूसरी ओर भाजपा को लग रहा था कि आतंकवाद के प्रति लचर रवैए के कारण दिल्ली में कांग्रेस का निपटना तय है इसलिए वो सबसे मनमाने तरीके और बदतमीजी से पेश आ रही थी। बस यही बात भाजपा को ले डूबी और शीला जी की विनम्रता पर दिल्ली की जनता ने विश्वास जताया। जनता ने ये भी देखा कि आंतकी घटनाएँ तो भाजपा के कार्यकाल में भी हुईं थीं। संसद पर दुस्साहसपूर्ण हमला भी उसी दौरान हुआ तो भाजपा ने क्या कर लिया आतंकियों का...??
दोस्तों, दूसरा उदाहरण राजस्थान का है......राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ग्वालियर के सिंधिया राज घराने की हैं, वे धौलपुर राजघराने में ब्याही हैं। लेकिन वे मुख्यमंत्री बनते ही भूल गईं कि अब राजे-रजवाड़ों का समय गया और लोकतंत्र की भूमिका है। वे ये भी भूल गईं कि अपने मुख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने जिस मुख्यमंत्री निवास को महल जैसा सजवा लिया था वो उनका स्थाई निवास नहीं है। उन्होंने गुर्जरों और मीणाओं को कीड़ा-मकौड़ा समझा। बाढ़ के दौरान आम जनता को भी तिलचट्टा समझा। किसी के मरने की परवाह नहीं की। उन्हें गलत आभास था कि राजस्थान की सत्ता उन्हें हमेशा के लिए मिल गई है। उनकी रीढ़ की हड्डी गये पाँच सालों में बहुत सख्त हो गई थी। अब अंततः जनता ने उन्हें धूल में मिला दिया और फिर से जता दिया कि रीढ़ की सख्ती उसे पसंद नहीं। अगर राज करना है तो विनम्रता के साथ करो नहीं तो बने रहो अपने धौलपुर के महल में महारानी....।
दोस्तों, तीसरा उदाहरण मेरे राज्य मध्यप्रदेश का है। यहाँ के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भले आदमी हैं। चेहरे से ही सौम्य हैं और उनकी रीढ़ को वैसी कोई समस्या भी नहीं है जैसी मैंने ऊपर बताई है लेकिन इस राज्य में एक ऐसा आदमी पहले राज कर चुका है जिसकी रीढ़ बहुत सख्त थी। उसका नाम दिग्विजय सिंह है। वो इस प्रदेश में १० साल मुख्यमंत्री रहे। अपने राज में इस प्रदेश को उन्होंने मिट्टी में मिला दिया। उनके भयानक राज को जनता भूली नहीं है और इस बार भाजपा सिर्फ इसलिए ही आ गई कि कहीं वो दिग्विजय सिंह दुबारा मुख्यमंत्री नहीं बन जाएँ। उनका नाम आज भी मप्र में एक हादसे की तरह है। कुल मिलाकर दिग्विजय सिंह द्वारा खोदे गए गड्ढे अभी तक भरे नहीं हैं और कांग्रेस उनमें दोबारा गिर गई है। (हालांकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी भले इंसान हैं लेकिन पुरानी करनी की भरपाई वो नहीं कर पाए)छत्तीसगढ़ में भी डॉ. रमन सिंह अपने सौम्य व्यक्तित्व और जनता के लिए सोचने और करने वाले की अपनी छवि के कारण ही दोबारा लौटे क्योंकि उनका विरोधी कांग्रेस का अजीत जोगी महाभ्रष्ट है और जनता नहीं चाहती थी कि एक सौम्य व्यक्ति की कीमत में एक रीढ़ की हड्डी के सख्त और भ्रष्ट आदमी को सत्ता की चाबी सौंपी जाए।
दोस्तों, इन बातों से हमें समझ आता है कि राजनीतिक पार्टी कोई सी भी हो जनता उसी को पसंद कर रही है जो विनम्रता के साथ राज करे....वो हमें महसूस कराए कि वो हमारे बीच का ही कोई है...।
आपका ही सचिन.....।

4 comments:

दीपक बाबा said...

सचिन सर, अभी थोडी देर पहेले मैंने भी चुनाव पर लिखा है. पढ कर अगर कुछ कोममेंट्स या टिप्स देंगे तो अच्छा लगेगा.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

आपने नेताओं के रीढ़ को रीड कर लिया और अच्छा रैट भी कर लिया। बधाई।

तरूश्री शर्मा said...

लगे हाथों उमा भारती का जिक्र भी कर ही देते सचिन। उनका फायर भी कुछ विशेष काम नहीं आ सका है। उन्होंने भी मुंह की खाई है।

Sachin said...

सही बात है तरु, उमा भारती को भी रीढ़ की ही समस्या है और इसलिए ही उनकी तथा उनकी पार्टी की इन विधानसभा चुनावों में ये गति हुई। वैसे भी उमा भारती के बारे में किसी को बताने की जरूरत नहीं है, सब जानते हैं कि वो जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वासी हैं। इसी के चलते वे खुद टीकमगढ़ चुनाव में हार गईं और उनकी पार्टी का प्रदर्शन बेहद निम्नस्तरीय रहा।