December 14, 2008

इन मानवाधिकारियों को मारो जूते!

मदद करने से पहले भी कारण खोजना चाहिए

दोस्तों, कल शाम जब कुछ वैबसाइट्स सर्च कर रहा था तो दो बातों ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। ये दोनों बातें आप लोगों ने आज सुबह के अखबारों में पढ़ ली होंगी। मुझे लगता है कि हमारे देश में जयचंदों ने आज भी पैदा होना नहीं छोड़ा है और एक जयचंद ने हमें १००० साल की गुलामी दिलवाई लेकिन इस समय भारत में इतने जयचंद हैं कि इस बार हम गुलाम हुए तो फिर कभी आजाद नहीं हो पाएँगे। तो शुरू करता हूँ......
पहली बात यह की हैदराबाद में पुलिस ने उन तीन लड़कों का एनकाउंटर कर दिया जिन्होंने हैदराबाद के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने वाली दो छात्राओं पर तेजाब फैंक दिया था। छात्राएं अब गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती हैं। मैं इस बात से खुश था कि तीनों भेड़िए (लड़कों के वेष में) मारे गए। क्योंकि ये उन लड़कियों और उनके माता-पिता से पूछो कि उनकी आगे की जिंदगी कितनी दूभर होनी वाली है.....क्योंकि हमारे महान भारत देश में आज भी लड़कियों के रंग और शक्ल की बहुत अहमियत है। तो दोस्तों, कुछ मानवाधिकार संगठन तुरंत आगे आ गए कि इन लड़कों को क्यों मारा...हालांकि पुलिस का कहना है कि लड़कों ने पुलिस पर हमला करने की कोशिश की थी....लेकिन मेरा कहना है कि अगर कोशिश ना भी की हो तो भी क्या फर्क पड़ता है....?? खैर, तो हमारे देश के द्रोही मानवाधिकार संगठन फिर से अपनी खाल से बाहर निकल आए हैं.....लड़कों के अभिभावकों का कहना है कि मामला कोर्ट में जाना चाहिए था (क्योंकि उन्हें पता है कि कोर्ट में जाने के बाद लड़के छूट जाते) और मानवाधिकारवादी (जो संसार में इतनी तादाद में और कहीं नहीं पाए जाते जितनी की भारत में) ऐसे मामलों में अचानक इसलिए सक्रिय हो जाते हैं क्योंकि उनके पास करने को इस बेगारी के अलावा कोई और काम भी नहीं होता।
लेकिन सबसे ज्यादा मुझे एक खबर ने चौंकाया कि मुंबई में अंधाधुंध गोलियाँ चलाकर कई लोगों की जान लेने वाले उस हरामी पाकिस्तानी आतंकी कसाब ने कानूनी मदद माँगी है। शायद कसाब को किसी ने बताया होगा कि इस भारत देश में कितनी भी हत्याएँ करके बचा जा सकता है। उसकी मदद के लिए तैयारी भी हो गई है और एक वकील अशोक सरावगी उसका केस लड़ने के लिए राजी बताया गया है। ये सरावगी फिलहाल देशद्रोही अबू सलेम का केस लड़ रहा है। वो अबू सलेम जिसकी इतनी हिम्मत बढ़ गई थी कि वो चुनाव लड़ने का सपना देखने लगा था, ये तो भला हो कि उसे इजाजत नहीं मिली, नहीं तो हमारे देश में कुछ भी संभव है। तो दोस्तों, ये सरावगी की माँ कौन होगी ये तो मुझे नही पता लेकिन ये मैं जानना चाहता हूँ कि कहीं वो ........ तो नहीं थी। (खाली जगह में आप अपनी पसंद का कोई सा भी शब्द लगा सकते हैं क्योंकि मैं कन्फ्यूज हूँ)। दोस्तों, ये सरागवी भी मानवाधिकारवादी है। इस खबर ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। जिस कसाब की खाल के हमें जूते बनाकर पहनने चाहिए उसे यह देश कानूनी मदद देगा। आपको वो ए.आर.गिलानी याद है। वही जेएनयू का हरामी प्रोफेसर जो संसद पर हमले के प्रमुख चार अभियुक्तों में से एक था। जब कोर्ट में उसके खिलाफ केस लड़ा जा रहा था तो वो मुस्लिम टोपी लगाकर पाकिस्तान जिंदाबाद और भारत मुर्दाबाद के नारे लगाता था। आज वो गिलानी जेएनयू में फिर से पढ़ा रहा है। कमाल है इस देश का। अरे, अगर उसपर संसद पर हमले का आरोप सिद्ध नहीं हुआ था तो भी क्या उसे सिर्फ जेल के अंदर इसलिए नहीं सड़ा देना चाहिए था कि वो भारत मुर्दाबाद के नारे लगा रहा था......?????
दोस्तों, ऐसे कई उदाहरण हैं। मानवाधिकार संगठनों पर इस देश में प्रतिबंध लगा देना चाहिए क्योंकि ये देशद्रोहियों और आतंकियों को बचाते रहते हैं। चूँकी हमारे कानून लचर हैं इसलिए पुलिस को हैदराबाद का उदाहरण लेकर पहली फुर्सत में ही अपराधी को मार देना चाहिए, नहीं तो उसके छूटने का अंदेशा हमेशा बना रहेगा। अगर मानवाधिकारवादी उसे नहीं छुड़ाएँगे तो कंधार विमान अपहरण जैसी घटना उन्हें छुड़वा देगी। क्या भारत सरकार को ये समझ नहीं आता कि जब तक अपराधियों के मन में कानून या सजा का भय नहीं होगा वो आखिर क्यों रुकेगा अपराध करने से....????सऊदी अरब, योरप या अमेरिका में अपराध क्यों कम हैं क्योंकि अपराधियों की वहाँ ऐसी की तैसी कर दी जाती है। अमेरिका ने पहले सोचा था कि मुस्लिम छात्रों को पढ़ा-लिखाकर वो उन्हें आतंकवाद से दूर कर सकता है लेकिन जब उसने देखा कि सॉफ्टवेयर इंजीनियर या पॉयलट बनकर भी ये आतंकवादी ही बन रहे हैं तो उसने पाकिस्तानी छात्रों को वीजा देना ही बंद कर दिया। लेकिन हम हैं कि अपराधियों को भी गले से लगा रहे हैं कि आओ हमारी पीठ में खंजर घोंपो। आखिर कब तक हम इन देशद्रोही मानवाधिकार संगठनों, मानवाधिकारवादियों और जयचंदों को सहेंगे....... हमें याद रखना होगा कि अगर हम इस बार गुलाम हुए तो फिर कोई रास्ता नहीं बचेगा.... अगर हमें देश बचाना है तो हमें कठोर नहीं कठोरतम होना पड़ेगा। इन मानवाधिकारियों को जूतों से मारना होगा...।
आपका ही सचिन....।

8 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर लिखा है।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

मैं अपना बाटा का पुराना जूता स्पेयर कर सकता हूं। हो सके, तो इस संस्था को बैन करना चाहिए। साले, जाकर अपना अधिकार आतंकवादी देशों में जताओ ना!

महेन्द्र मिश्र said...

ऐसे देशद्रोही जयचंदों को फाँसी दे देना चाहिए जो आतंकवादियो का पक्ष लेते है. आपकी चिंता जायज है.

Varun Kumar Jaiswal said...

अगर हम इन मानवाधिकारी कुत्तों की खाल उतरकर जुटे पहनने का संकल्प लें तभी कुछ उत्थान सम्भव है |

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

हमारे यहां सत्ता, पुलिस, कानून किसी का भी डर नहीं बचा है। और बिना डर के व्यवस्था बनाये रखना बहुत मुश्किल होता है। हर अपराधी कानून को अपने हिसाब से तोड़ने-मरोड़ने में सक्षम हो चला है पैसे के जोर पर।
राम जेठमलानी जैसे धनलोलूप वकील तो प्रत्यक्ष अपराधी को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। बहुत बार दिमाग में एक बात आती है कि खुंखार अपरधियों, हत्यारों, देशद्रोहियों को बचाने वाले ये तथाकथित कानून के रखवाले यदि हार जायें तो इनको भी वही सजा होनी चाहिये जो इनके आकाओं को हुई हो। शायद इस डर से अपराध का ग्राफ कुछ तो नीचे आयेगा।

राज भाटिय़ा said...

अरे भाई इतना गुस्सा अच्छा नही, पुलिस को चाहिये था कि इन लडको के चेहरे पर भी अच्छी तरह से तेजाब फ़ेकती,ताकि उन्हे भी उस दर्द का पता चलता जो वो बेचारी लडकी उम्र भर भुगते गी, इन लडको को मार कर अच्छा नही किया, इस से तो यह कमीने सब दर्दो से बच गये, मजा तब आता जब वो तिल तिल मरते, उन हरामियो के हाथ पेर तोड देते.ओर वो मोत चाहते लेकिन तिल तिल मरते
किसी को एक दम से मारना तो उसे उस सजा से मुक्त करना है, जो उस की आत्मा पर बोझ है....
बस इन्हे कोई कानुन का सहारा नही , क्योकि कानुन इन के लिये है ही नही,

विधुल्लता said...

भाई सचिन जी ,हम उस मिटटी से बने हैं की पिछली कोई भी घटना हो ,सबक नही सीखते आपका आक्रोश सटीक है उन लड़कियों से भो पूछना जरुरी है की आख़िरवो क्या चाहती?...ये सच भी है के मानव अधिकार आयोग को अपनी भूमिका मैं बदलाव लाना चाहिए ...सोच मैं परिवर्तन भी ताकि अपराध को और अपराधी को देखने की द्रष्टि उस मानवीय द्रष्टि कौण से भिन्न हो जिसके प्रति जहाँ अपराध हुआ हो ...आपके लेख मैं दमदारी है ,,,एक संगठन के माध्यम से भी आन्दोलन चलाया जा सकता है ...

Suresh Gupta said...

मेरी राय में एक मानवाधिकारी से दूसरे मानवाधिकारी के चेहरे पर तेजाब फिंकवाना चाहिए, और पुलिस को फैंकने वाले के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं करनी चाहिए.